मसीही जीवन के लिए अनिवार्य तत्व
-
अध्याय 1: यीशु कैन हैं \
सात अध्ययन की यह श्रृंखला मसीही दृष्टिकोण, उसकी पहचान कार्य, शिक्षाओं व मृत्यु से यीशु मसीही के व्यक्तित्व को प्रस्तुत करती है। यीशु मसीह विश्वास व धर्म का केंद्र बिंदु है, इसलिए शिष्यों के लिए यीशु को जानना और जो लोग नये विश्वासीगण है उनके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि कौन सी बातें यीशु को अनोखा तथा हमारी भक्ति व अनुपालन के योग्य बनती है।आपके प्रतिभागी विभिन्न संस्कृति या पृष्ठभूमि से सम्बन्धित हो सकते हैं जो यीशु के अस्तित्व व शिक्षाओं की बारे में अलग विचार रखते होंगे। यह श्रृंखला शिष्यता के क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए अति उत्तम बुनियाद साबित होगी। -
अध्याय 2: उद्धार को समझना
विभिन्न अध्यायों की यह श्रृंखला उद्धार से सम्बन्धित विचारों और मसीही बनने वाले लोगों के जीवन में होने वाली घटनाओं का मूल्यांकन करती है। दूसरे लोगों को प्रभावशाली ढंग से सुसमाचार सुनाने के लिए प्रत्येक विश्वासी को इन शिक्षाओं को जानना व समझना बेहद आवश्यक है। प्रत्येक अध्याय बाइबल में पाए जाने वाले एक विषय पर दृष्टिकोण व विचारों का मूल्यांकन करता तथा इन सिद्धांतों और उन्हें आपके जीवन में उपयोग करने के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करता है। यह पाठ्यक्रम नये विश्वासियों को शिष्य बनाने तथा उन्हें इन विचारों को समझाने के लिए अति उत्तम है। -
अध्याय 3: मसीही जीवन व् सांसारिक दृष्टिकोण
अध्यायों की यह श्रृंखला मसीही जीवन के लिए आवश्यक चुनावों व व्यवहारों का मूल्यांकन करती है। परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन व्यतीत करने का अर्थ है कि हम जिन बातों का चुनाव दैनिक जीवन में करते है, उनका प्रभाव हमारे विशवास पर पड़ता है। इसका अर्थ प्रार्थना करना सीखना परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार व्यवहार करना, तथा दूसरों की सेवा करना सीखना है। मसीहियत की व्यवहारिकता को समझने के लिए बहुत से महत्वपूर्ण अध्ययन दिए गए है। इन सिद्धांतों पर और अपने जीवन में इनका प्रभावशाली ढंग से उपयोग करने पर चर्चा करने के लिए कुछ समय अलग करें। -
अध्याय 4: परमेशवर के साथ हमारा सम्बन्ध
अध्यायों की यह श्रृंखला परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध की जाँच करती है। इसकी शुरुआत मसीह में हमारी पहचान को समझने से होती है जो कि इस बात का परिणाम है कि हम परमेश्वर की संतान हैं। अध्यायों की यह श्रृंखला परमेश्वर की विशेषताओं, कैसे हम परमेश्वर की बारे में जन और उसे बहतर रूप से समझ सकते है, और कैसे हम उसके साथ एक व्यक्तिगत सम्बन्ध बना सकते है, पर प्रकाश डालती है। परमेश्वर की दृष्टि में अपनी अहमियत और परमेश्वर को स्पष्टता से समझना है, कि वह हमें उस प्रकार का जीवन व्यतीत करने में सहायता करेगा जो कि परमेश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है। -
अध्याय 5: सुसमाचार प्रचार की शुरुआत
अध्यायों की यह श्रृंखला प्रतिभागियों को प्रभावशाली ढंग से दूसरों तक सुसमाचार सुनाने हेतु तैयार करने के लिए निर्माण की गई है। यह समझना कि परमेश्वर किस प्रकार हमें अपनी सेवकाई के लिए तौयार करते हैं और विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए अपने सुसमाचार संदेशों को तैयार करना, यीशु मसीह में पाए जाने वाले आशा के अटल सन्देश को उन लोगों को सुनाने में सहायता करेगा जो अभी तक उसे नहीं जानते। -
अध्याय 6: 4 नियमों की सहायता से सुसमाचार प्रचार करना
यह विधि कैंपस क्रूसेड की संस्था पर बिल ब्रिटे द्वारा लिखित चार आध्यात्मिक नियम के विचारों का इस्तेमाल करता है। इस तरीके का इस्तेमाल सुसमाचार प्रचार करने के लिए किया गया है। सुसमाचार प्रचार में सहायता करने के लिए एक पुस्तिका के तोर पर औज़ारों के रूप में उपलब्ध है। प्रकाशित करने के योग्य सामग्री भिन्न भाषाओं में www.4laws.com उपलब्ध हैं, ये अध्याय चार आध्यात्मिक नियमों के बारे में और उन्हें अपनी बातचित में इस्तेमाल करना और लोगों को इसके द्वारा सुस्समाचार बताने तथा लोगों को यीशु मसीह को आमंत्रित करने के बारे में बताते हैं। व्यवहारिक चर्चा इसमें शामिल सिद्धांतों का अभ्यास करने में सहायता करती है। -
अध्याय 7: मसीही अनुशासन
अध्यायों की यह श्रृंखला मसीही जीवन में अनुशासन के बारे में बताती है जिसमें प्रार्थना बाइबल अध्ययन और अपना मन अनंत बातों पर लगाना शामिल है। यह रोचक पाठ्य सामग्री परिपक्व मसीहियों के आत्मिक जीवन को स्फूर्ति और नवीनता तथा नये विश्वासियों के विश्वास को गहराई प्रदान करेगी। यह सामग्री व्यवहारिक परन्तु परमेश्वर के प्रति समर्पित बहुत से आत्मिक पुरस्कारों पर केंद्रित है। -
अध्याय 8: परमेशवर एवं आत्मिक क्षेत्र
अध्यायों की यह श्रृंखला आत्मिक जगत की वास्तविकता का मूल्यांकन करती है – जिसमें भली और बुरी दोनों शक्तियाँ वास करती हैं। इस अध्याय में बुराई के मूल शैतान के दंड आत्मिक जगत की वास्तिविकता और दैनिक जीवन में पाए जाने वाले दृढ़ गढ़ों, परमेश्वर द्वारा प्रदान किये हुए हथियारों के बारे में शैतान के खिलाफ परमेश्वर की युद्ध रणनीति, सारी बातों पर परमेश्वर के नियंत्रण और अलोकिक तरीकों के बारे में बताया गया है जिसके द्वारा परमेश्वर अपने लोगों से बातचीत करते हैं।
आत्मिक नेतृत्व के लिए आवश्यक
-
अध्याय 1: शिष्यता की खोज करना
अध्यायों की यह श्रृंखला यीशु मसीह के अनुयायियों के आत्मिक जीवन की बनावट पर अध्ययन करती है - जिसे शिष्यता कहा जाता है। शिष्यता की प्रक्रिया तब होती है जब कोई व्यक्ति यीशु मसीह पर विश्वास करता तथा अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति करने की इच्छा व्यक्त करता है। किसी नये विश्वासी की विश्वास में बढ़ने में सहायता करना ही शिष्यता कहलाता है। यह सामग्री हर एक उस व्यक्ति की सहायता कर सकती है जो किसी की अगुवाई कर रहा हो, विशेषकर जो सुसमाचार प्रचार करने का अभ्यास कर रहे हों, जो नये विश्वासियों को अपनी संगति में साथ लेकर उनकी विश्वास में बढ़ने में सहायता करता है। शिष्यता या चेले बनाना, प्रत्येक विश्वासी का, विशेषकर आत्मिक अगुवों का कर्तव्य है। -
अध्याय 2: छोटे समूहों की अगुवाई करना
इन अध्यायों का उद्देश्य विकासशील अगुवों को कोशल व समझ द्वारा तैयार करना है ताकि वे सफलतापूर्वक छोटे समूहों की अगुवाई कर सकें। छोटा समूह बाइबल अध्ययन या शिष्यता का समूह, या कोई दूसरे प्रकार का लधु समूह हो सकता है जिसे शिष्यता या सेवा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक छोटे समूह के अगुवे के रूप में तैयार होने से दूसरों को सिखाने की योग्यता में आपको फायदा होगा और साथ ही साथ सभी लोगों को इस काम में बहुत मजा आएगा। यह माॅड्यूल वर्तमान काल में कलीसिया की अगुवाई में शामिल लोगों या छोटे समूह के सदस्यों के लिए तैयार किया गया है। कौन जाने कि एक छोटे समूह का सदस्य किसी दूसरे समूह की ज़िम्मेदारी का कार्यभार सम्भालें। -
अध्याय 3: आत्मिक वरदान
इसमें पवित्रशास्त्र में वर्णित आत्मिक वरदानों की विस्तृत श्रृंखला की जाँच की गई है और यह बताया गया है कि विश्वासी किस प्रकार परमेश्वर और उसके लोगों की सेवा में इन वरदानों का प्रयोग कर सकते हैं। भागीदारों को उनके और उनके आस-पास के दूसरे लोगों के आत्मिक वरदानों को पहचानने के बारे में मार्गदर्शन दिया जाएगा। उन्हें परमेश्वर के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे की सेवा करने और आत्मा एवं सत्य में आराधना करने के द्वारा अपने आत्मिक वरदानों का प्रयोग करने का प्रोत्साहन मिलेगा। -
अध्याय 4: कलीसिया और आराधना
अध्यायों की यह श्रृंखला इस बात की जाँच करती है कि बाइबल कलीसिया के उद्देश्य के संबंध में क्या सिखाती है और वह कैसे अस्तित्व में आई। कलीसियाई अगुवों को इसकी जानकारी होनी चाहिए कि स्वर्गारोहण के पश्चात् यीशु मसीह ने अपनी देह के रूप में (संसार में अपने राजदूतों के रूप में) कार्य करने के लिए कलीसिया की स्थापना क्यों की। पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरी कलीसिया को संसारभर में सुसमाचार का प्रसार करने और स्थानीय समुदाय में सेवा करने का निर्देश दिया गया है। कलीसिया आराधना करने, परमेश्वर के वचन की शिक्षा पाने और एक-दूसरे की सहायता करने एवं प्रोत्साहन देने के लिए नियमित रूप से एकत्रित होती है। -
अध्याय 5: पारिवारिक जीवन
अध्यायों की यह श्रृंखला घर की अगुवाई करने के उन आत्मिक सिद्धान्तों पर मनन करता है जो हमारी स्वस्थ्य मसीही परिवार बनाने में सहायता करते हैं। इसका प्रारम्भ बाइबल आधारित बुनियादी तत्वों की समझ से होता है, और जो आगे बढ़कर विवाह के लिए तैयार होना, जीवन साथी के बीच स्वस्थ पारस्परिक समझ, पूँजी का प्रबन्ध तथा बच्चों की अगुवाई के बारे में शिक्षा प्रदान करती है। इस श्रृंखला के आधार पर आत्मिक अगुवाई का आरम्भ अपने घर ही से प्रारम्भ होता है, तथा स्त्री व पुरूष की इसमें एक अनोखी भूमिका होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान संसार में बहुत प्रकार के पारिवारिक तस्वीरें हमारे सामने आती हैं, यह अध्याय परमेश्वर द्वारा तैयार की गयी पारिवारिक तस्वीर को प्रस्तुत करता है। यह अध्याय विवाहित लोगों, अभिभावकों तथा उन जवान लोगों की मदद करेगा जो भविष्य में स्वस्थ्य सम्बन्ध बनाना चाहते हैं। -
अध्याय 6: नेतृत्व का तरीका
यह पाठ मसीही अगुवाईपन में रहने वालों के व्यवहारिक और आत्मिक ज़रुरतों के बारे में जाँच करती है। एक अगुवा होना एक सभा के आगे खडे़ होकर उन्हें अपने पीछे चलने को कहने से कही अधिक है! एक महान अगुवा होने के लिए, सार्वजनिक और व्यक्तिगत दोनों ही जीवन में ऊँचा मापदण्ड होना चाहिए। हम में से हर कोई कई प्रकार से जीवन में संघर्ष कर रहे हैं, एक अगुवा विशिष्ट चुनौतियों का सामना करता है। यह माॅडयूल उन संघर्षों को पहचानने में मदद करता है और व्यावहारिक सलाह देता है कि कैसे उसका मुकाबला परमेश्वर के द्वारा अगुवाई के लिए बुलाये गये स्त्री और पुरुषों के परीक्षा और आनंद के अनुभवों से करें । प्रत्येक पाठ एक अगुवे के साथ अगुवा पाठ का निष्कर्ष निकालता है। इसमें ऐतिहासिक मसीहियों, वर्तमान मसीहियों और लोग (अगुवे नहीं हैं) जो उस विषय में अपना विचार रखते हैं उनके विशेष उद्धरण है। -
अध्याय 7: मसीही चरित्र विकसित करना
जब मसीही लोग असफल हो जाते हैं और सेवकाई टुट जाती है, यह अक्सर अगुवें में चरित्र की कमी के कारण होता है। एक मसीही अगुवे को चरित्र के विकास को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि शिष्यता के लिए हमें मसीह के समान चरित्र में बढ़ने की आवश्यकता है। यह माॅडयूल कई मसीही चरित्र की जाँच करेगा जो कि एक सेवक अगुवापन के विकास के लिए ज़रुरी है। हम देखेंगे कि इन चरित्रों के बारे में बाइबल क्या सिखाती है, और यीशु के उदाहरण और अन्य लोग उसका प्रदर्शन करते हैं। ईष्वरीय चरित्र सभी मसीह के चेलों के जीवन में स्पष्ट रुप से नज़र आना चाहिए, खासतौर पर वे जो दूसरों की अगुवाई करते हैं। -
अध्याय 8: क्षमा और पुनर्मिलन
हमारे जीवनों में परमेश्वर की क्षमा को स्वीकार करना और दूसरों को क्षमा करना कठिन हो सकता है। दूसरों को क्षमा करना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति के विरूद्ध है। लेकिन जब हम परमेश्वर को हमारे दिलों और मनों को बदलने की अनुमति देते हैं तो हम परमेश्वर और एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप का अनुभव कर सकते हैं। यह माॅड्यूल क्षमा के धर्मशास्त्रीय आधारों, मेल-मिलाप के लिए ज़रूरी प्रक्रिया, और एक-दूसरे के साथ मेल-जोल में रहने को बढ़ावा देने के तरीके की खोज करता है। यह क्षमा को भी जाँचता है क्योंकि व्यक्तियों या एक समुदाय के सदस्यों के बीच इसकी ज़रूरत हो सकती है। -
अध्याय 9: मसीही सिद्धांत
अध्यायों की इस श्रृंखला में उन सिद्धान्तों की जाँच की गई है जो हमारे विश्वास के आधार हैं और इस बात पर बल दिया गया है कि त्रुटिपूर्ण सिद्धान्त किस प्रकार हमारे सत्य विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। सिद्धान्त हमारे विचारों का एक समूह है जो हमारे विश्वास के व्यवहार को निर्धारित करता है। मसीहियों के लिए परमेश्वर के स्वभाव और उद्धार के बारे में सही सिद्धान्त को समझना निर्णायक है, विशेषतः यदि वे सिखाने और चेले बनाने के काम में संलग्न हैं। इस माॅड्यूल में मसीही कलीसिया के कुछ मुख्य सिद्धान्तों से संबंधित वचनों के साथ-साथ प्रत्येक सिद्धान्त से जुड़े असमंजस एवं त्रुटि के क्षेत्रों की जाँच की गई है। -
अध्याय 10: पास्तरीय मूल बातें
यह पाठ मुलभूत अनुयायीपन माॅडयूल शीर्षक पास्टरीय आधारभूत का भाग है। यह मुलभूत अनुयायी माॅडयूल अप्रशिक्षित अगुवों की मदद करेगा जो कलीसिया में पास्टर के रुप में सेवा कर रहे हैं, और जो पास्टर की भूमिका निभाना चाहते है। यह स्थानीय कलीसिया में पास्टर के कई कर्तव्यों को दर्शाता है, और दर्शाता है कि कलीसिया सदस्य को अपने पास्टर से क्या अपेक्षा रखनी चाहिए।इसमें कुछ विशिष्ट चुनौतियाँ भी शामिल है, जैसे विभिन्न आयु समूह और कलीसिया उन्नति पर विचार भी।
यीशु कौन है
इस अध्याय का उद्देश्य यह जानना है कि यीशु कौन हज है? वह कहाँ और कैसे रह तथा उसने अपने बारे में क्या दावा किया|
अपने श्रोतागण को जानना
इस अध्याय का उद्देश्य प्रतिभागियों को तैयार करना है कि वे अलग -अलग श्रोतागणों के साथ सुसमाचार संदेश बाँटने के तरीको के बारे में सोचे और संभव रुकावटों को पहचानें|
वयस्क सीखनेवालों को निर्देश
इस पाठ का उद्देश्य एक वयस्क सीखनेवाले की अनोखी आवश्यकताओं को खोजना है और उनको कलीसियाई या सेवकाई के छोटे समूहों के परिपेक्ष में किस प्रकार शिक्षित करना है|
छोटे समूहों में प्रार्थना
इस पाठ का उद्देश्य छोटे समूहों के लिए प्रार्थना करने के कारणों की खोज करना है और नए समर्पण के साथ प्रार्थना करने और छोटे समूहों में प्रार्थना की विधि को सुझाने को इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित करना है|
समझ पर सयंम
यह पाठ समझ पर सयंम के परमेश्वर चरित्र लक्षण की खोज करता , कैसे यीशु और दूसरों ने इन्हें दिखाया और कैसे इन्हें हम अपने जीवनों में विकसित कर सकते हैं|
- यीशु कैन हैं \
- उद्धार को समझना
- मसीही जीवन व् सांसारिक दृष्टिकोण
- परमेशवर के साथ हमारा सम्बन्ध
- सुसमाचार प्रचार की शुरुआत
- 4 नियमों की सहायता से सुसमाचार प्रचार करना
- मसीही अनुशासन
- परमेशवर एवं आत्मिक क्षेत्र
- शिष्यता की खोज करना
- छोटे समूहों की अगुवाई करना
- आत्मिक वरदान
- कलीसिया और आराधना
- पारिवारिक जीवन
- नेतृत्व का तरीका
- मसीही चरित्र विकसित करना
- क्षमा और पुनर्मिलन
- मसीही सिद्धांत
- पास्तरीय मूल बातें